आला रे , आला रे, आला !
रद्दी कागज़ शीशी बोतल वाला !
आपके घर में जो भी बेकार का सामान हो,
सपने हो, सच्चाई हो , आत्मा हो ,इमान हो,
मत शर्माइये बेहिचक ले आइये ,
हम उसे तोल कर वाजिब मोल देंगे |
आपके लिए समृद्धि का द्वार खोल देंगे |
इमान में, बुद्धि में ,रंग में, रूप में
जानाब!
वहां मार्केट की सीढ़ियों पर धुप में,
बड़े से बड़े बिकाऊ लोग खढे हैं |
गिरती हुई कीमतों की पर्चियां लगाये ,
क्रांति की डलिया में समर्पण सजाये ,
चले आ रहे हैं एक से एक समझदार, सरे बाज़ार, परवरदीगार !
पर इस आत्मा नाम की चीज़ का क्या करू ?
क्या इसे थाल में रखकर पेश करता रहूँ?
बेक़सूर मार खाए बच्चे की तरह आकिर कबतक डरता रहूँ ?
ओ परवरदिगार !
यह तुमारा बुजदिली का त्यौहार मुबारक हो तुम्हे !!
मुझे अपने एकांत में लौट जाने दो |
अरे ! जो झुके नहीं टूट गए ,
उनकी पराजय का विजयगान मन ही मन गुनगुनाने दो |
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