आजकल अक्सर नींद से उठ जाता हूं,
कुछ बातों को याद, तो कुछ यादों को भूलना चाहता हूं,
बहुत कश्मकश है अब जिंदगी में,
हमेशा किसी के पास, तो किसी से हमेशा दूर रहना चाहता हूं,
वक्त नहीं है मेरे पास, अब और खुद को परखने का,
जो हूं, जैसा हूं, उसका सबसे बेहतर बनना चाहता हूं,
उलझने बहुत हैं, पर आसान कुछ भी नहीं,
रास्ते बहुत हैं, पर सही कौन सा ? ये भी पता नहीं,
शायद यही जिंदगी है जिसका इल्म अब हुआ है,
अब किनारों पे नहीं, मझधार में उतरना चाहता हूं,
मैं सलिल हूं, बिना रुके वक्त के साथ बहना चाहता हूं.......
मैं सलिल हूं, अपनी तकदीर फिर से लिखना खुद चाहता हूं.......
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